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डॉ. केशवराव बलीराम हेडगेवार की पुण्यतिथि है आज, क्यों बनाया था हिंदुओं का संगठन

संक्षिप्त जीवन परिचय

डॉ॰ हेडगेवार का जन्म 1 अप्रैल 1889 को महाराष्ट्र के नागपुर जिले में पण्डित बलिराम पन्त हेडगेवार के घर हुआ था। इनकी माता का नाम रेवतीबाई था। माता-पिता ने पुत्र का नाम केशव रखा। केशव का बड़े लाड़-प्यार से लालन-पालन होता रहा। उनके दो बड़े भाई भी थे, जिनका नाम महादेव और सीताराम था।पिता बलिराम वेद-शास्त्र के विद्वान थे एवं वैदिक कर्मकाण्ड (पण्डिताई) से परिवार का भरण-पोषण चलाते थे। स्वामी दयानन्द सरस्वती के अनुयायी व आर्य समाज में निष्ठा होने के कारण उन्होंने अग्निहोत्र का व्रत लिया हुआ था। परिवार में नित्य वैदिक रीति से सन्ध्या-हवन होता था।
राष्ट्रीय स्वंयसेवक संघ के संस्थापक डॉ. केशवराव बलीराम हेडगेवार का पूरा जीवन अखंड भारत की परिकल्पना को साकार करने के लिए समर्पित रहा है। उन्होंने ही देश में पहला हिंदुओं की रक्षा करने के लिए एक संगठन बनाया जो बाद में राष्ट्रीय स्वंयसेवक संघ बन गया। आरएसएस का आधार इसकी शाखाएं मानी जाती हैं। पर आपको यह जानकर आश्चर्य होगा की जिस संगठन की शुरुआत महाराष्ट्र के नागपुर से हुई थी उसकी पहली शाखा मध्यप्रदेश के खंडवा शहर से हुई थी। इसकी शुरुआत की थी राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के पहले सर संघ चालक और संघ के आधार स्तंभ डॉ. केशवराव बलीराम हेडगेवार ने।
खंडवा में लगी पहली शाखा
डॉ. केशवराव बलीराम हेडगेवार द्वारा खंडवा में आरएसएस की पहली शाखा लगाने का जिक्र वर्तमान सर संघ चालक मोहन भागवत ने ही एक बार अपने खंडवा प्रवास के दौरान किया था। उन्होंने कहा था कि खंडवा से संघ का काफी पुराना रिश्ता है। यहीं से शुरू हुई संघ की पहली शाखा आज पूरे विश्व में फैल चुकी हैं। उन्होंने कहा था कि डॉ. हेडगेवार और माधवराव सदाशिवराव गोलवलकर ने भी खंडवा आकर स्वयंसेवकों को जोड़ा था।
फेंक दी थी मिठाई
हेडगेवार जब वे 9-10 साल के थे, तो उन्होंने रानी विक्टोरिया के राज्यारोहण की पचासवीं जयंती पर बांटी गई मिठाई यह कहकर कूड़े में फेंक दी थी कि विदेशी राज्य की खुशियां हम क्यों मनाएं। इसी प्रकार 15-16 वर्ष की अवस्था में स्कूल निरीक्षक के आने पर उन्होंने हर कक्षा द्वारा ‘वन्दे मातरम्’ का नारा लगवाया था। इससे नाराज होकर प्रधानाचार्य ने उनको विद्यालय से निकाल दिया था और फिर वे दूसरे विद्यालय में पढ़े थे। डॉ. केशवराव बलिराम हेडगेवार राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के संस्थापक जन्म हिन्दू वर्ष प्रतिपदा के दिन (1 अप्रैल 1889) नागपुर महाराष्ट्र मे हुआ था। डॉक्टरी की पढ़ाई करने कलकत्ता गए। परिवार जनों की इच्छा थी की वह नौकरी करें पर उन्होंने ऐसा न कर देश सेवा का रास्ता चुना।
कलकत्ता में आए क्रांतिकारियों के संपर्क में
मेडीकल की पढ़ाई करते समय ही केशव बलिराम हेडगेवार बंगाल के क्रान्तिकारियों के संपर्क में आ गए और उनके दल के सदस्य बन गए। उनकी नेतृत्व क्षमता के कारण उन्हें हिन्दू महासभा बंगाल प्रदेश का उपाध्यक्ष भी बनाया गया। किसी संगठन को किस तरह चलाया जाता है सीखकर कलकत्ता से नागपुर आ गए।
कॉग्रेस के थे सक्रिय सदस्य
डॉ हेडेगेवार देश उस समय देश की आजादी के लिए गठित कांग्रेस और हिन्दू महासभा के लिए काम करते रहे। उसी दौरान लोकमान्य तिलक की मृत्यु हो गई। गांधीजी के असहयोग आंदोलन और सविनय अवज्ञा आंदोलन में भी उन्होंने भाग लिया। परन्तु ख़िलाफ़त आंदोलन की जमकर आलोचना भी की। सन् 1916 के कांग्रेस अधिवेशन में लखनऊ गए। वहां संयुक्त प्रान्त (वर्तमान यूपी) की युवा टोली के संपर्क में आए। बाद में जब कांग्रेस से मोह भंग हुआ और तो आजाद जी के गुट से भी जुड़ गए। यहां उनका नाम केशव चक्रवर्त्ती था। 9 अगस्त -1925 हुए काकोरी ट्रेन काण्ड के फरार आरोपियों से वह एक थे। इस समय उनका नाम केशव चक्रवर्त्ती था।
एक घटना ने बदल दिया जीवन
1921 में अंग्रेजो ने तुर्की के सुल्तान को गद्दी से उतार दिया। ये बात भारत के मुसलमानों को नागवार गुजरी। जगह-जगह आंदोलन हुए। केरल के मालाबार जिले में आंदोलन ने उग्र रूप ले लिया। अंग्रेजों के सामने तो मुसलमानों की चली नहीं। उनका कहर टूटा केरल की निर्दोष और असहाय हिंदू जनता पर। इस हिंसक बबाल में बड़ी संख्या में हिंदुओं का कत्ल हुआ और स्त्रियों की इज्जत लूटी गई। इस घटना ने उन्हें बिचलित कर दिया था। और इस घटना के बाद से उनके जीवन का लक्ष्य बदल गया।
हिंदुओं के लिए बना पहला संगठन
इस घटना के बाद कई कई हिंदू नेता केरल के हालात जानने के लिए केरल गए। इनमें नागपुर के प्रमुख हिंदू महासभाई नेता डॉ. बालकृष्ण शिवराम मुंजे, डॉ. हेडगेवार, आर्य समाज के नेता स्वामी श्रद्धानंद आदि थे। नागपुर के कुछ हिन्दू नेताओं ने समझ लिया कि हिन्दूओं एकता ही उनकी सुरक्षा कर सकती है। नागपुर में डॉ. मुंजे ने कुछ हिंदू नेताओं की बैठक हुई। जिनमें डॉ. हेडगेवार एवं डॉ. परांजपे भी थे। बैठक में उन्होंने एक हिंदू-मिलीशिया बनाने का निर्णय लिया। इसका उद्देश्य था हिंदुओं की रक्षा करना एवं हिन्दुस्थान को एक सशक्त हिंदू राष्ट्र बनाना।
डॉ. केशव बलीराम हेडगेवार को दी गई जिम्मेदारी
नए बनाए गए मिलीशिया को खड़ा करने की जिम्मेदारी डॉ. मुंजे ने डॉ. केशव बलीराम हेडगेवार को दी। पहले स्वतंत्रता संग्राम की असफल क्रान्ति और तत्कालीन परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए उन्होंने एक अर्ध-सैनिक संगठन की नींव रखी। 28. 9. 1925 विजयदशमी को डॉ. बालकृष्ण शिवराम मुंजे, उनके शिष्य डॉ. हेडगेवार, श्री परांजपे और बापू साहिब सोनी ने एक हिन्दू युवक क्लब की नींव डाली, जिसका नाम राष्ट्रीय स्वंयसेवक संघ हो गया।
वीर सावरकर बने आर्दश
इस मिलीशिया का आधार बना – वीर सावरकर का राष्ट्र दर्शन ग्रन्थ (हिंदुत्व) जिसमे हिंदू की परिभाषा यह की गई थी कि – “भारत के वह सभी लोग हिंदू हैं जो इस देश को पितृभूमि-पुण्यभूमि मानते हैं”. इनमे सनातनी, आर्यसमाजी, जैन , बौद्ध, सिख आदि पंथों एवं धर्म विचार को मानने वाले व उनका आचरण करने वाले समस्त जन को हिंदू के व्यापक दायरे में रखा गया था. मिलीशिया को खड़ा करने के लिए स्वंयसेवको की भर्ती की जाने लगी, सुबह व शाम एक-एक घंटे की शाखायें लगाई जाने लगी. इसे सुचारू रूप से चलाने के लिए शिक्षक, मुख्य शिक्षक, घटनायक आदि पदों को बनाया गया।
सैनिक शिक्षा देने की थी तैयारी
शाखायों में व्यायाम, शरारिक श्रम, हिंदू राष्ट्रवाद की शिक्षा के साथ- साथ वरिष्ठ स्वंयसेवकों को सैनिक शिक्षा भी दी जानी थी। रात के समय स्वंयसेवकों की गोष्ठीयां होती थीं। वीर सावरकर की पुस्तक हिंदुत्व के अंश भी पढ़ कर सुनाए जाते थे। प्रारंभ में हेडगेवार का स्वभाव बहुत उग्र था। एक बार एक सभा में एक वक्ता ने अपने भाषण में तिलक के बारे में कोई अपशब्द बोल दिए तो उन्होंने मंच पर जाकर माइक पकड़कर उस वक्ता के मुंह तमाचा मारा और उसे मंच से नीचे धकेल दिया।

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