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शिव मंदिर फिरोजपुर झिरका एक एतिहासिक मंदिर है जहा सभी भक्तो की मुराद पूरी करते है महादेव जी

पांडव कालीन प्राचीन मंदिर फिरोजपुर झिरका 

शिव मंदिर फिरोजपुर झिरका एक एतिहासिक मंदिर है (जहा सभी भक्तो की मुराद पूरी करते है महादेव जी 


राजधानी दिल्ली से 110 और साईबर सिटी गुडगांव से करीब 70 किलोमीटर, व अलवर राजस्थान से 60 किलोमीटर,भरतपुर राजस्थान से 70 किलोमीटर की दूरी पर नुहू  जिले के  कस्बा फिरोजपुर झिरका की अरावली पर्वत श्रंखलाओं में स्थित यह  पांडव कालीन प्राचीन शिव मंदिर का विचित्र  इतिहास है। मान्यता है कि पांडवों ने अज्ञातवास के दौरान इस रमणीक स्थल पर पूजा अर्चना कर शिवलिंग की स्थापना की थी। तभी से यह भूमि तपोभूमि के नाम से विख्यात है। इस पांडव कालीन मंदिर में वर्ष में दो बार शिव रात्री का विशाल मेले का आयोजन किया जाता है। मेले में हरियाणा, राजस्थान, उत्तर प्रदेश सहित दिल्ली से भारी संख्या में शिव भक्त यहां आते हैं। शिव मंदिर के बारे में अनेक कहावते भी प्रचलित हैं।

पांडव कालीन प्राचीन मंदिर फिरोजपुर झिरका मे बनी जलहरी 
कहा जाता है कि यहां पवित्र गुफा में शिव लिंग के दर्शन मात्र से ही जन्म जन्मानंतर के दुखों का निवारण हो जाता है। यहां श्रधालु अपनी मनो कामनाओं को पूरी करने के लिये तथा अच्छे वर और पतनी की इच्छा के लिये पेड से धागा बांधते हैं। यहां की पर्वत मालाओं से बहते प्राकृतिक झरने में स्नान करने से सभी तरह के चर्म रोग भी दूर हो जाते हैं। इसके अलावा शिव लिंग पर जल अभिषेक करने से सभी मनोकामनाऐंपूरी होती हैं। 
यहां के अरावली पर्वत श्रंखलाओं की हरियाली सैलानियों व भगतों का मन मोह लेती हैं। वहीं कल-कल की ध्वनि के साथ बहता प्राकृतिक झरना असीम शांति देता हैं। लोगों का कथन है कि अरावली पर्वत श्रंखला में कुदरती तौर पर बनी लंबी घुपायें और कुदरती बहते झरने ने पांडवों को यहां रोके रखा और अपने बनवास का अधिकतर समय उन्होने यहीं बिताया।
सन 1876 के दौरान फिरोजपुर झिरका के तत्कालीन तहसीलदार जीवन लाल शर्मा को अरावली की पर्वत श्रुखलाओं में शिव लिंग का सपना आया था। इसका अनुसरण करते हुऐ 20 दिन के अथक प्रयास से तहसीलदार ने पवित्र शिवलिंग खोज निकाला था। 

शिव मंदिर से निकलता झरना 
इसके बाद उस स्थान पर पूजा अर्चना शुरू कर दी गई। धीरे-धीरे श्रधालुओं का जमघट लगना शुरू हो गया।
यहां वर्ष में सावन बदी चौदस और फागुन बदी चौदस के दो बार मेला लगता है सावन बदी की शिव रात्रि के मौके पर मेले में श्रधालु नीलकंठ, गौमुख वे हरिद्वार से पवित्र कांवड लेकर यहां आते हैं और शिव लिंग पर जल अभिषेक करते हैं वहीं जिन श्रधालुओं को मनोकामना पूरी हो जाती है और नवविवाहिता महिलायें पुत्र प्राप्ति के लिये वे फागुन वदी के मेले में शिव लिंग पर जेघड चढाती हैं।
शिव मंदिर के मंहत और मोनी बाबा के नाम से मशहुर छोटे लाल के मुताबिक वर्ष भर इस धार्मिक स्थल पर श्रधालुओं को तांता लगा रहता है। यहां पर दिल्ल्ी, राजस्थान और उत्तरप्रदेश सहित काफी जगों से यहां लोग आते है। पुजारी के अनुसार पाुडवों के लिये छुपने की यह सबसे अच्छी जगह थी। वे जहां जहां ठहरे वहां उनहोने पूजा के लिये शिव लिंग का निर्माण किया था। आने वाली लोगों की यहां सभी मनोकामनाये पूरी होती हैं। शिव रात्री के मौके पर भोल भंडारी किसी ने किसी रूप में अपना दर्शन जरूर देते हैं। बहुत से श्रधालु काफी दूर तक पेट के बल (दंडोती) लगा कर मन्नते मांगते हैं।
शिव मंदिर विकास समिति के अध्यक्ष अनिल कुमार  का कहना है कि यहां आने वाले श्रधालुओं का खास ख्याल रखा जाता है। किसी भी अप्रिय घअना से निपटने के लिये दस से अधिक सीसी केमरे लगा रखे हैं जो पूरी मंदिर पर नजर रखते हैं। इसके अलावा यहां लोगों के ठहरने के लिये धर्मशालायें बनी हुई हैं। इसके अलावा मेले पर खाने पीने का पूरा इंतजाम होता है। 


शिव मंदिर मे जल अभिषेक  के लिए अपनी बारी का इंतजार करते 
भगतजन मंदिर पसिर में भंडारा करते हैं। मंदिर में महंत मौनी बाबा के नाम से विख्यात हैं जिन्होने 12 वर्ष तक मौन व्रत रखकर कठोर तपस्या की थी। ओर भक्तो का भला किया मंदिर तक निजी वहन, टेक्सी और बसों से पहुंचा जा सकता है। यह शिव मंदिर दिल्ली से करीब 115 किलोमीटर, अलवर से करीब 60 किलोमीटर, तिजारा से 18 किलोमीटर और मथुरा से करीब 120 किलोमीटर को सफर तैय करना पडता है।
भले ही शिव रात्री पर श्रधालुओं की भारी भीड रहती हो लेकिन उनके भगत हर रोज यहां आते रहते हैं। 


पांडव कालीन प्राचीन शिव मंदिर पर हरियाणा के मुख्यमंत्री तक अपनी मन्नते मांगने के लिए आते रहते है ! 






जय भोले नाथ 




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