योगी गोरखनाथ की लीला देखें, हर युग में उपस्थित हैं बाबा
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सिद्ध योगी गुरु गोरख नाथ जी महाराज |
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गुरु गोरख नाथ जी |
नाथ सम्प्रदाय के साधक लोगों को योगी, अवधूत, सिद्ध, औघड़ कहा जाता है, जिसका नींव आदिनाथ, जिन्हें स्वयं शिव ही माना गया है, ने की थी। आदिनाथ के दो शिष्य थे, जालंधरनाथ और मत्स्येन्द्रनाथ। जालंधरनाथ के शिष्य रहे थे कृष्णपाद और मत्स्येन्द्रनाथ के शिष्य थे गोरक्षनाथ। इस प्रकार यह कहा जा सकता है कि ये चार योगी नाथ परंपरा के प्रवर्तक थे।बाबा गोरखनाथ को शिव का अवतार भी कहा जाता है, जिससे जुड़ी एक कथा प्रचलित है। कहते हैं एक बार गोरखनाथ तप में लीन थे। उन्हें देखकर देवी पार्वती ने शिव से उनके विषय में पूछा। पार्वती से वार्तालाप करते हुए शिव ने उन्हें कहा कि धरती पर योग के प्रसार के लिए उन्होंने ही गोरक्षनाथ के रूप में अवतार लिया है। गोरखनाथ का जीवन अपने आप में अद्भुत था। उन्हें हर युग में देखा गया और संबंधित घटनाओं के साथ उनके रिश्तों को भी जोड़ा गया। सर्वप्रथम सतयुग में उन्होंने पंजाब में तपस्या की थी, उसके बाद त्रेतायुग में उन्होंने उत्तर प्रदेश के एक स्थान गोरखपुर में रहकर ही साधना की, जहां उन्हें राम के राज्याभिषेक के लिए भी निमंत्रण भेजा गया था। लेकिन उस दौरान वे तपस्या में लीन थे इसलिए वह खुद तो ना पहुंच सके हालांकि अपना आशीर्वाद राम के लिए भेजा था।द्वापरयुग में जूनागढ़, गुजरात में स्थित गोरखमढ़ी में गोरखनाथ ने तप किया था। इसी स्थान पर रुक्मिणी और कृष्ण का विवाह भी संपन्न हुआ था। इस अलौकिक विवाह में देवताओं के आग्रह के बाद गोरखनाथ ने भी अपनी उपस्थिति दर्ज करवाई थी।
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गोरखनाथ ने उन्हें गूगल नामक फल प्रसाद के तौर पर दिया जिसे ग्रहण करने के बाद वे गर्भवती हो गईं। गूगल फल से ही उनका नाम गोगाजी पड़ा, जो आगे चलकर राजस्थान के ख्याति प्राप्त राजा बने। एक अन्य कथा के अनुसार एक बार राजकुमार बप्पा रावल, किशोरावस्था में अपने दोस्तों और साथियों के साथ शिकार पर गए। जब वे जंगल पहुंचे तो उन्हें गोरखनाथ तप में लीन अवस्था में दिखे। उन्होंने वहीं रहकर गोरखनाथ की सेवा करनी शुरू कर दी।जब गोरखनाथ अपने ध्यान से जागे तब उन्होंने बप्पा रावल को देखा और उनकी सेवा से वे बहुत प्रसन्न हुए। गोरखनाथ ने बप्पा को एक तलवार भेंट की, जिसके बल पर चित्तौड़ राज्य की स्थापना हुई
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श्री नवनाथ स्वरूप दर्शन |
गोरखनाथ के उपदेशों में योग और शैव तंत्र, दोनों का ही सामंजस्य है। गोरखनाथ का मानना था कि सिद्धियों की सीमा से पार जाकर जब व्यक्ति शून्य की अवस्था में पहुंच जाता है, तभी उसके जीवन की असली शुरुआत होती है।शून्य का अर्थ है खुद को ब्रह्मलीन कर देना, जहां व्यक्ति को परम शक्ति का अनुभव होने लगता है। हठयोग करने वाला व्यक्ति कुदरत के सारे नियमों से मुक्त होकर उसे चुनौती देने लगता है, उस अदृश्य शक्ति को भी जहां से शुद्ध प्रकाश का उद्भव होता है।
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