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झिरका के झिरकेश्वर शिव मंदिर में विराजमान है चमत्कारी शिवलिंग । भक्तगणों की पूरी होती है मनोकामनाएं।

 फ़िरोजपुर झिरका(पुष्पेंद्र शर्मा, डी.सी.नहलिया) आइये दोस्तो आज हम है हरियाणा के एक छोटे से शहर फ़िरोजपुर झिरका में स्थित पांडव कालीन इस प्राचीन मंदिर का इतिहास, जानिए कैसे बना था शिवलिंग  फिरोजपुर झिरका भारत के हरियाणा राज्य में स्थित है और अरावली पर्वतमाला से घिरा हुआ है ।
पांडव कालीन प्राचीन सही मंदिर का मनमोहक दृश्य

देश की राजधानी दिल्ली से एक सो दस और गुडग़ांव से लगभग सत्तर व जयपुर से दो सौ तीस  व अलवर से साठ किलोमीटर की दूरी पर नुहू जिले के कस्बा फिरोजपुर झिरका जो कि अरावली पर्वत श्रृंखलाओं में स्थित पांडव कालीन प्राचीन शिव मंदिर का अनूठा इतिहास है।
शिव मंदिर के अंदर स्थापित प्रचीन चमत्कारी शिवलिंग
मान्यता है कि पांडवों ने अज्ञातवास के दौरान इस रमणीक स्थल पर पूजा-अर्चना कर शिवलिंग की स्थापना की थी। तभी से यह जगह तपोभूमि के रूप में विख्यात है। इस पांडवकालीन मंदिर में वर्ष में दो बार शिव रात्रि पर विशाल मेले का आयोजन किया जाता है। मेले में हरियाणा, राजस्थान, उत्तर प्रदेश, पंजाब, हिमाचल, सहित दिल्ली से बहुत अधिक संख्या में शिव भक्त यहां आते हैं। शिव मंदिर के बारे में अनेक कहावतें भी प्रचलित हैं।
प्राचीन कालीन शिवलिंग के दर्शन के लिये अपनी बारी का 
इंतजार करते दूर दराज से आये भक्तगण

कहा जाता है कि यहां पवित्र गुफा में शिव लिंग के दर्शन मात्र से ही जन्म जन्मांतर के दुखों का निवारण हो जाता है। यहां की पर्वत मालाओं से बहते प्राकृतिक झरने में स्नान करने से सभी तरह के चर्म रोग भी दूर हो जाते हैं। इसके अलावा प्राचीन शिव लिंग पर जलाभिषेक करने से सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं। अरावली पर्वत श्रृंखलाओं की हरियाली सैलानियों व भक्तों का मन मोह लेता है। वहीं, कल-कल की ध्वनि के साथ बहता प्राकृतिक झरना असीम शांति देता है।
शिव मंदिर का प्राकृतिक दृश्य 

आपको बता दे कि सन् अट्ठार सो सैंतीस के तत्कालीन तहसीलदार जीवन लाल शर्मा को अरावली की पर्वत श्रृंखलाओं में शिव लिंग का सपना आया था। इसका अनुसरण करते हुए तहसीलदार ने पवित्र शिवलिंग खोज निकाला। इसके बाद उस स्थान पर पूजा-अर्चना शुरू कर दी गई। धीरे-धीरे श्रद्धालुओं का जमघट लगना शुरू हो गया। यहां शिव रात्रि का वर्ष दो बार मेला भी लगता है ।शिव रात्रि के मौके पर मेले में श्रद्धालु नीलकंठ, गौमुख व हरिद्वार से पवित्र कांवड़ लेकर यहां आते हैं। इसके अलावा क्षेत्र की नवविवाहित महिलाएं पुत्र प्राप्ति के लिए शिव लिंग पर दोघड़ चढ़ाती हैं।
शिवलिंग काअदभुत श्रृंगार जो प्रति दिन पुजारियों द्वारा किया जाता है 

शिव मंदिर विकास समिति के अध्यक्ष अनिल गोयल के मुताबिक यहां आने वाले श्रद्धालुओं के ठहरने के लिए धर्मशालाएं बनी हैं। वर्ष भर इस धार्मिक स्थल पर श्रद्धालुओं का तांता लगा रहता है। मान्यता है कि शिव रात्रि पर भोले भंडारी किसी न किसी रूप में अपने भक्तों को अवश्य दर्शन देते हैं। आस्था-प्राचीन समय से यहां एक कदम का वृक्ष है। मान्यता है कि इसपर अपनी मनोकामना की पूर्ति के लिए जो सच्चे मन से रिबन, धागा बांधता है,
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उसकी मुराद अवश्य पूरी होती है। मनोकामना पूरी होने पर भक्तजन यहां मंदिर परिसर में भंडारा करते हैं। दूर तक पेट के बल बच्चे, महिलाएं व पुरुष (दंडोती) लगा कर अपनी मन्नतें मांगते हैं। मंदिर के महंत मौनी बाबा के नाम से विख्यात हैं, जिन्होंने लगातार बारह वर्ष तक मौन व्रत रख कठोर तपस्या की थी।मार्ग परिचय-देश की राजधानी दिल्ली से एक सो दस किलोमीटर की दूरी पर पश्चिम दिशा में है। राजस्थान के तिजारा से सतर कि.मी. व अलवर से साठ किमी. की दूरी पर है। यहां बसों के अलावा निजी साधनों व टैक्सी के जरिए पहुंचा जा सकता है।

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