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जैसे ही मानसून दस्तक देता है, वैसे ही शहर और गांवों में एक नया अभियान शुरू हो जाता है—पौधा लगाओ और फोटो खिंचवाओ। नेता, अधिकारी, संस्था प्रमुख, और स्वघोषित पर्यावरण प्रेमी पानी की बाल्टी लिए कैमरे के सामने मुस्कराते नजर आते हैं। लेकिन सवाल यह उठता है कि क्या यह पौधारोपण सच में हरियाली के प्रति उनकी प्रतिबद्धता को दर्शाता है या यह महज एक मौसमी दिखावा है?
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हर साल हजारों की संख्या में पौधे लगाए जाते हैं, लेकिन उनमें से कितने पेड़ बनते हैं, इसका कोई लेखा-जोखा नहीं होता। नतीजा यह है कि साल-दर-साल शहर की हरियाली घट रही है। असल में पौधा लगाना पर्यावरण की सेवा तभी है जब उसका पोषण भी किया जाए।
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झिर रोड आरावली क्षेत्र मे वृक्ष रोपण करते स्वच्छ गंगा झीर अभियान की टीम के सदस्य |
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पौधारोपण की सेल्फी संस्कृति
स्वच्छ गंगा झीर अभियान से जुड़े सदस्यों ने इस विषय में तीखी टिप्पणी की है। उनका कहना है कि, "जैसे बरसात आते ही मेंढक निकलते हैं, वैसे ही फोटोबाज़ पर्यावरण सेवक भी हरियाली की आड़ में सामने आ जाते हैं। ये लोग न तो खुद गड्ढा खोदते हैं, न पौधा खरीदते हैं, और न ही उसे संभालते हैं। बस कैमरे में मुस्कराते हुए एक तस्वीर ले लेते हैं और 'हरियाली के मसीहा' बन जाते हैं।"
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इनका आरोप है कि ऐसे लोग पर्यावरण को बचाने की बजाय पौधों की हत्या कर रहे हैं। जिस तरह भ्रूण हत्या समाज के लिए अभिशाप है, उसी तरह पौधे लगाकर उन्हें मरने के लिए छोड़ देना भी पर्यावरण की भ्रूण हत्या है।
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पेड़ लगाना जिम्मेदारी है, दिखावा नहीं
कई बार देखा गया है कि स्कूलों, पार्कों या सरकारी संस्थानों को पेड़ की देखरेख की जिम्मेदारी सौंप दी जाती है। जबकि लगाने वाला खुद भूल जाता है कि उसने कहां और कौन सा पौधा लगाया था। कई संस्थाएं पौधारोपण का श्रेय तो ले लेती हैं, लेकिन जब शहर में पेड़ काटे जाते हैं, तो यही लोग चुप्पी साध लेते हैं।
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इस बार भी मानसून के आगमन पर वही पौधारोपण का शोर है, लेकिन ज़मीनी स्तर पर कोई गारंटी नहीं कि ये पौधे अगले साल तक जीवित रहेंगे।
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झिर रोड आरावली क्षेत्र मे वृक्ष रोपण करते स्वच्छ गंगा झीर अभियान की टीम के सदस्य |
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एक जिम्मेदार अपील
स्वच्छ गंगा झीर अभियान के सदस्यों ने सभी नागरिकों से अपील की है “पौधे तभी लगाएं जब आप उनका पालन-पोषण कर सकें। सिर्फ सेल्फी और सोशल मीडिया पोस्ट के लिए पौधों की बलि न दें।” नर्सरी में पल रहे स्वस्थ पौधों को सिर्फ दिखावे के लिए लगाना, और बाद में उन्हें मुरझाने के लिए छोड़ देना, एक तरह की हिंसा है—प्रकृति के साथ और खुद के जमीर के साथ भी।
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