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हरियाणा में चिकित्सकों की भारी कमी, 1100 सरकारी पद खाली, मरीजों को नहीं मिल रहा गुणवत्तापूर्ण इलाज।


हरियाणा में चिकित्सकों की भारी कमी, 1100 सरकारी पद खाली, मरीजों को नहीं मिल रहा गुणवत्तापूर्ण इलाज।

हरियाणा में चिकित्सकों की भारी कमी, 1100 पद खाली

ओपीडी में रोज 250 मरीज, सरकारी डॉक्टर समय के संकट में

प्राइवेट डॉक्टर अधिक, पर गरीबों की पहुंच से दूर

डब्ल्यूएचओ के मानकों से पीछे हरियाणा, चिकित्सा सेवाओं पर बड़ा असर

वेतन और प्रमोशन की कमी से सरकारी डॉक्टरों में असंतोष बढ़ा

हरियाणा में सरकारी अस्पतालों में डॉक्टरों की भारी कमी से मरीजों को इलाज के लिए करना पड़ता है लंबा इंतज़ार।

 डी.सी.नहलिया

हरियाणा में स्वास्थ्य सेवाएं उस मानक पर नहीं पहुंच पा रही हैं जिसकी जरूरत प्रदेश की बढ़ती आबादी के लिए है। राज्य के सरकारी अस्पतालों में चिकित्सकों के करीब 1100 पद खाली पड़े हैं, जिससे मरीजों को समय पर और गुणवत्तापूर्ण इलाज नहीं मिल पा रहा। विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के अनुसार प्रति 1000 नागरिकों पर एक डॉक्टर होना आवश्यक है, लेकिन हरियाणा अभी भी इस मानक को पूरा करने में पीछे है।

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3 करोड़ की आबादी, लेकिन केवल 5 हजार सरकारी डॉक्टर

राज्य की जनसंख्या लगभग 2.75 करोड़ है। WHO के मानक अनुसार इस जनसंख्या के लिए 27,000 डॉक्टर आवश्यक हैं। जबकि वर्तमान में हरियाणा में चिकित्सकों के केवल 5437 सरकारी पद स्वीकृत हैं, और करीब 1100 पद रिक्त पड़े हुए हैं। यानी, सिर्फ 4300 के आसपास डॉक्टरों से पूरी स्वास्थ्य व्यवस्था संचालित हो रही है।

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ओपीडी में 200 मरीज, समय सिर्फ 1 मिनट

सरकारी अस्पतालों में काम कर रहे डॉक्टरों पर भारी दबाव है। एक सामान्य चिकित्सक को रोजाना 200 से 250 मरीजों को देखना पड़ता है। ऐसे में किसी एक मरीज को सिर्फ 1 से 1.5 मिनट ही मिल पाता है, जिससे गहन जांच, परामर्श और इलाज जैसे जरूरी पहलुओं की अनदेखी होती है। हरियाणा सिविल मेडिकल सर्विस एसोसिएशन के अध्यक्ष डॉ. राजेश ख्यालिया ने बतायासरकारी अस्पतालों में न सिर्फ डॉक्टरों की भारी कमी है, बल्कि विशेषज्ञ डॉक्टरों (Specialist Doctors) की अनुपस्थिति हालात को और गंभीर बना रही है। कई जिलों में स्त्री रोग विशेषज्ञ (Gynecologist) और फिजीशियन (Physician) तक मौजूद नहीं हैं।

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वेतन और पदोन्नति की भी बड़ी समस्या

सरकारी डॉक्टरों के लिए पदोन्नति (Promotion) की प्रक्रिया भी बेहद धीमी है। 90% डॉक्टरों को पूरी सेवा अवधि में सिर्फ एक ही प्रमोशन मिल पाता है। अधिकांश डॉक्टर Medical Officer से Senior Medical Officer (SMO) बनते हैं और वहीं रिटायर हो जाते हैं। यह स्थिति युवाओं को सरकारी क्षेत्र से दूर कर रही है। डॉ. ख्यालिया कहते हैं कि सरकार को वेतनमान में वृद्धि और प्रमोशन की पारदर्शी प्रणाली लागू करनी चाहिए ताकि डॉक्टरों को लंबे समय तक सेवा देने की प्रेरणा मिल सके।

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प्राइवेट सेक्टर में हैं 15,000 डॉक्टर, लेकिन गरीबों की पहुंच से बाहर

हरियाणा में प्राइवेट प्रैक्टिस करने वाले डॉक्टरों की संख्या लगभग 15,000 है और लगभग 1,000 आयुष चिकित्सक भी कार्यरत हैं। हालांकि, प्राइवेट स्वास्थ्य सेवाएं आम नागरिक विशेषकर आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग के लिए महंगी और असहज हैं। आईएमए (Indian Medical Association) के पूर्व अध्यक्ष डॉ. अजय महाजन का कहना है कि राज्य में करीब 14 से 15 हजार निजी डॉक्टर हैं, लेकिन अधिकांश गरीब मरीज प्राइवेट अस्पतालों में इलाज नहीं करवा सकते। इसलिए सरकारी अस्पतालों की मजबूती बहुत जरूरी है।

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राज्य सरकार के सामने बड़ी चुनौती

चिकित्सकों की कमी के चलते न केवल मौजूदा स्वास्थ्य सेवाओं पर असर पड़ रहा है, बल्कि राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशनों और योजनाओं की सफलता भी प्रभावित हो रही है। विशेषज्ञों का मानना है कि सरकार को

  • नए पद सृजित करने,
  • भर्ती प्रक्रिया तेज करने,
  • आकर्षक वेतन व प्रमोशन सिस्टम लागू करने की जरूरत है।

तभी गुणवत्तापूर्ण चिकित्सा सेवाएं आम जनता तक पहुंच पाएंगी।

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